अनाथालय में पली दृष्टिबाधित लड़की माला की प्रेरणादायक ये कहानी: कूड़े से उठकर सफलता तक का सफर !

वह बच्ची अब मुंबई में महाराष्ट्र के सचिवालय- मंत्रालय में से क्लर्क-कम-टाइपिस्ट के रूप में काम करेगी। इस गुरुवार के दिन को जब MPSC का रिजल्ट आया तो पुनर्वास गृह में खुशी ही खुशी छा गई।

अनाथालय में पली दृष्टिबाधित लड़की माला की प्रेरणादायक ये कहानी: कूड़े से उठकर सफलता तक का सफर !

अमरावती :25 साल पहले ही महाराष्ट्र के जलगांव रेलवे स्टेशन पर से कुछ लोगों ने एक बच्चे के रोने की आवाज सुनी हुई थीं। कुत्तों के भोंकने की भी आवाजें आ रही थीं। आवाज को सुनकर ही लोग उस दिशा में दौड़े तो हैरान हो गए। कूड़े के ढेर में एक नवजात बच्ची पड़ी हुई थी। गंदगी और बदबू के बीच एक कपड़े के टुकड़े में लिपटी हुई बच्ची को देखकर लोग दहल गए। वहा के आसपास के कुत्ते भी भोंक रहे थे, लोगों ने उस कुत्तों को भगाया और उस बच्ची को उठाया। पुलिस को यह सूचना दी की। यह बच्ची दृष्टिबाधित थी। उसके माता-पिता के अज्ञात और लापता होने के कारण से, पुलिस ने उस स्तब्ध, भूखी नवजात बच्ची को जलगांव के एक रिमांड होम में भेजा गया। फिर बच्ची को अस्पताल में ले जाया गया। उसे एक भी बार मां का दूध भी नसीब नहीं हुआ था। भूख से बिलख रही उस बच्ची को दूध पिलाया गया। प्राथमिक उपचार के बाद से उसे वापस 270 किलोमीटर दूर के अमरावती के परतवाड़ा में बधिर और दृष्टिहीन लोगों के लिए बेहतर सुविधाओं वाले पुनर्वास गृह में भेज दिया गया।

उस बच्ची को पुनर्वास गृह में नया घर भी मिला और नया नाम भी दिया गया। उस बच्ची को माला पापलकर नाम दिया गया। यहां वह पली-बढ़ी और बच्ची ने पढ़ाई शुरू की और दो दशक बाद महाराष्ट्र लोक सेवा का आयोग (MPSC) की परीक्षा पास कर के बुलंदियों को छू लिया।

MPSC रिजल्ट से छाई हुई खुशी

वह बच्ची अब मुंबई में महाराष्ट्र के सचिवालय- मंत्रालय में से क्लर्क-कम-टाइपिस्ट के रूप में काम करेगी। इस गुरुवार के दिन को जब MPSC का रिजल्ट आया तो पुनर्वास गृह में खुशी ही खुशी छा गई।

इस माला के गुरु और पद्म पुरस्कार विजेता 81 वर्षीय के शंकरबाबा पापलकर ने न केवल उन्हें अपना उपनाम दिया, बल्कि उनकी प्रतिभा को भी निखारा। मावा को ब्रेल लिपि में से प्रशिक्षित भी किया और अपनी शिष्या को दृष्टिबाधित और अनाथ बच्चों की दुनिया में एक पथप्रदर्शक बनाया हुआ।

शंकरबाबा पापलकर ने दिखाया यह रास्ता

इस माला के गुरु और पद्म पुरस्कार के विजेता 81 वर्षीय के शंकरबाबा पापलकर ने न केवल उन्हें अपना उपनाम दिया, बल्कि उनकी प्रतिभा को भी निखारा हुआ है। यह मावा को ब्रेल लिपि में प्रशिक्षित भी किया और अपनी शिष्या को दृष्टिबाधित और अनाथ बच्चों की दुनिया में से एक पथप्रदर्शक बनाया है।