समीर कला मंदिर में मूर्तियों की धूम !

मुंबई के कांदिवली ईस्ट इलाक़े में हर साल की तरह इस बार भी गणपति बप्पा के आगमन की तैयारियां ज़ोरों पर हैं। आज हम पहुंचें समीर कला मंदिर – एक ऐसा कारख़ाना जहां गणपति बप्पा की अलग-अलग तरह की भव्य और खूबसूरत मूर्तियां बनाई जाती हैं। यहां पर प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP), मिट्टी, क्ले और यहां तक कि पुराने न्यूज़पेपर से तैयार की गई गणपति की मूर्तियां भी बनाई जा रही हैं।

समीर कला मंदिर में मूर्तियों की धूम !
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Mumbai : मुंबई के कांदिवली ईस्ट इलाक़े में हर साल की तरह इस बार भी गणपति बप्पा के आगमन की तैयारियां ज़ोरों पर हैं। आज हम पहुंचें समीर कला मंदिर – एक ऐसा कारख़ाना जहां गणपति बप्पा की अलग-अलग तरह की भव्य और खूबसूरत मूर्तियां बनाई जाती हैं। यहां पर प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP), मिट्टी, क्ले और यहां तक कि पुराने न्यूज़पेपर से तैयार की गई गणपति की मूर्तियां भी बनाई जा रही हैं।

कारख़ाने के मालिक ने हमें बताया कि यहां की खासियत है कि हर मूर्ति ऑर्डर के हिसाब से तैयार होती है। ग्राहक जो भी डिज़ाइन, साइज़ या मटीरियल चाहते हैं, उसी के अनुसार बप्पा का निर्माण किया जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि भले ही प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP) पर सरकार ने बैन लगाया हो, लेकिन वे सरकारी नियमों का पालन करते हैं। यदि कोई ग्राहक विशेष ऑर्डर देकर POP की मूर्ति बनवाना चाहता है, तो ही उसे तैयार किया जाता है, अन्यथा ज़्यादातर मूर्तियां मिट्टी और क्ले से बनाई जाती हैं।

ईको-फ्रेंडली मूर्तियों की बढ़ती मांग

पिछले कुछ वर्षों में लोगों का रुझान ईको-फ्रेंडली मूर्तियों की ओर तेज़ी से बढ़ा है। ऐसे में यहां आने वाले अधिकांश भक्त मिट्टी और क्ले की मूर्तियां पसंद करते हैं, ताकि वे घर में ही बप्पा का विसर्जन कर सकें। खास बात यह है कि विसर्जन के बाद यह मिट्टी गमलों और पौधों में डाल दी जाती है, जिससे बप्पा का आशीर्वाद हमेशा घर में बना रहे और वातावरण को भी नुकसान न हो।

डायमंड से सजी मूर्तियों का भी क्रेज


जहां एक ओर लोग साधारण और ईको-फ्रेंडली मूर्तियां चुनते हैं, वहीं कुछ भक्त भव्य और शाही अंदाज़ वाले गणपति बप्पा को पसंद करते हैं। उनके लिए यहां डायमंड और स्टोन से जड़ी मूर्तियां भी बनाई जाती हैं। इन मूर्तियों के लिए मालिक और उनकी टीम को पहले से खास तैयारी करनी पड़ती है, ताकि त्योहार के समय ग्राहकों को उनका मनचाहा बप्पा मिल सके।

निर्माण प्रक्रिया – कला और धैर्य का संगम


एक मूर्ति को तैयार करने में समय और मेहनत दोनों लगते हैं। समीरजी के अनुसार, एक बार मूर्ति का बेस तैयार करने के बाद उसे पूरी तरह सूखने में 10 से 15 दिन का समय लगता है। उनके कारख़ाने में एक बार में 25 मूर्तियां बनाई जाती हैं। निर्माण के दौरान बहुत कम मात्रा में केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है, और ज़्यादातर मूर्तियां पूरी तरह प्राकृतिक (natural) बनाई जाती हैं।

गुजरात से आती है मिट्टी


मूर्तियों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मिट्टी खासतौर पर गुजरात से मंगवाई जाती है, ताकि मूर्तियों की क्वालिटी बेहतरीन रहे और वे लंबे समय तक अपनी सुंदरता बनाए रखें। कारख़ाने में रोजाना 25 से 30 कच्ची मूर्तियां तैयार की जाती हैं, जिन्हें सूखने के बाद पॉलिश और सजावट की जाती है।

त्योहार की रौनक और भावनाएं


गणेशोत्सव सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि मुंबई की पहचान और भावनाओं का हिस्सा है। कांदिवली ईस्ट के इस कारख़ाने में जाकर महसूस होता है कि यह काम सिर्फ बिज़नेस नहीं, बल्कि भक्ति और कला का संगम है। यहां हर मूर्ति में कारीगरों का हुनर, उनका धैर्य और बप्पा के प्रति उनकी श्रद्धा साफ झलकती है।

जैसे-जैसे गणेशोत्सव नज़दीक आ रहा है, वैसे-वैसे समीर कला मंदिर में हलचल और बढ़ रही है। कारीगर दिन-रात मेहनत कर रहे हैं ताकि इस साल भी मुंबई के घर-घर में बप्पा का आगमन धूमधाम और श्रद्धा के साथ हो सके।