बॉम्बे हाई कोर्ट ने निजी स्कूलों को क्यों लगाई रोक, महाराष्ट्र सरकार से मांगा यह जवाब?

सोमवार के दिन को चीफ जस्टिस डी के उपाध्याय और जस्टिस आरिफ डॉक्टर की बेंच ने यह सुनवाई के बाद कहा हैं। कि प्रथम दृष्टया नियमों में से किया गया यह बदलाव आरटीई कानून के विपरीत और उसके दायरे के बाहर ही नजर आ रहा है। यह शिक्षा के अधिकार को भी प्रभावित करता है।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने निजी स्कूलों को क्यों लगाई  रोक, महाराष्ट्र सरकार से मांगा यह जवाब?

मुंबई: बॉम्बे के हाईकोर्ट ने राइट टू एजुकेशन (आरटीई) इस कानून के अंतर्गत निजी स्कूलों को छूट देने वाले राज्य के सरकार के नए नियम पर अगले आदेश तक का अंतरिम रोक भी लगा दीया गया है। इस अधिसूचना के अंतर्गत से इन नियमों के तहत से अब निजी स्कूलों को आरटीई के 25 प्रतिशत तक कोटे से छूट भी दी हुई थी। अब नियमों के अनुसार, यदि निजी के स्कूल के एक किमी के दायरे में से सरकारी या अनुदानित स्कूल हुआ, तो निजी स्कूल को आरटीई के तहत से 25 प्रतिशत तक सीटें कमजोर तबकों के बच्चों के लिए अब आरक्षित नहीं रखना पड़ेगा। इस नियम को अब जनहित याचिका के जरिए से हाई कोर्ट में चुनौती दी जाएगी है।

सोमवार के दिन को चीफ जस्टिस डी के उपाध्याय और जस्टिस आरिफ डॉक्टर की बेंच ने यह सुनवाई के बाद कहा हैं। कि प्रथम दृष्टया नियमों में से किया गया यह बदलाव आरटीई कानून के विपरीत और उसके दायरे के बाहर ही नजर आ रहा है। यह शिक्षा के अधिकार को भी प्रभावित करता है।

सरकार से क्या मांगा 

इस तरह से बेंच ने व्यापक सार्वजनिक हित को भी ध्यान में रखते हुए यह नियमों पर रोक लगा दीया। बेंच ने यह साफ कहा है कि कानून के प्रावधान में यह सब कहीं नहीं लिखा है कि आरटीई का आरक्षण केवल पड़ोस में ही सरकारी स्कूल न होने की स्थिति में लागू भी होगा। अब बेंच ने 12 जून को याचिका पर अगली सुनवाई भी रखी हुई है और सरकार को अब हलफनामा दायर करने का निर्देश भी दिया गया है।

नियम समावेशी शिक्षा के विपरीत'से 

 यह सीनियर ऐडवोकेट गायत्री सिंह के माध्यम से ही दायर याचिका में दावा यह किया गया है कि नए नियम अब 6 से 14 साल के बच्चों के शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन भी करते हैं। यह नियम आरटीई के तहत से समावेशी शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य के विपरीत भी है। इसलिए यह नियम हाशिए पर पड़े बच्चों के हितों को प्रभावित भी करते हैं। मध्यप्रदेश से इलाहाबाद के हाई कोर्ट ने आरटीई कानून में किए गए इस तरह के बदलाव को भी रद्द कर दिया गया है, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद हैं।14, 21, 21ए, का उल्लंघन यह करता है। इससे पहले ही सरकारी वकील ज्योति चव्हाण ने इस याचिका का विरोध भी किया। उन्होंने यह कहा है कि नए नियम के केवल एक किमी के दायरे में ही स्थित निजी गैर अनुदानित स्कूलों पर ही लागू होते हैं।